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🌺 *ll ॐ श्री राणीसत्यै नमःll* 🌺अबकी मावस पे यही वर दे देनातेरी सेवा में माँ मुझे भी रख लेनाहम चाहे दूर या पास रहेंमैय्या तेरे बनके खास रहें..,तेरे प्यारे होते जो भी तेरे साथ ही रहतेकोई ना कोई सेवा के बहाने नज़रो में तेरी रहते चलाना राह तेरी विघन सब हर लेनातेरी भक्ती से माँ झोली मेरी भर देनाहम चाहे दूर या पास रहेमैय्या तेरे बनके खास रहें...!बड़भागण दादी का गुण गाकर बड़भागी कहांऊहर सुख हर सुविधा जीवन में जननी तुझसे पांऊसितम अब दुनिया के नही हमको सहनातेरे श्री चरणों में बिठाये माँ रखनाहम चाहे दूर या पास रहेमैय्या तेरे बनके खास रहे..!!सौंप दिया जीवन ये तुझको माई इसे बनानाआप सिवा कोई ना अपना हमनें तो ये जाना#खुशी की अरजी माँ ध्यान से पढ़ लेनाहाथ बच्चों के सिर माँ अपना ऱख देनाहम चाहे दूर या पास रहेमैय्या तेरे बनके सदा खास रहें..!!!🙏🌺🙏🌺🙏🌺🙏🌺🙏🌺🙏

🌺 *ll ॐ श्री राणीसत्यै नमःll* 🌺 अबकी मावस पे यही वर दे देना तेरी सेवा में माँ मुझे भी रख लेना हम चाहे दूर या पास रहें मैय्या तेरे बनके खास रहें.. , तेरे प्यारे होते जो भी तेरे साथ ही रहते कोई ना कोई सेवा के बहाने नज़रो में तेरी रहते  चलाना राह तेरी विघन सब हर लेना तेरी भक्ती से माँ झोली मेरी भर देना हम चाहे दूर या पास रहे मैय्या तेरे बनके खास रहें...! बड़भागण दादी का गुण गाकर बड़भागी कहांऊ हर सुख हर सुविधा जीवन में जननी तुझसे पांऊ सितम अब दुनिया के नही हमको सहना तेरे श्री चरणों में बिठाये माँ रखना हम चाहे दूर या पास रहे मैय्या तेरे बनके खास रहे..!! सौंप दिया जीवन ये तुझको माई इसे बनाना आप सिवा कोई ना अपना हमनें तो ये जाना #खुशी की अरजी माँ ध्यान से पढ़ लेना हाथ बच्चों के सिर माँ अपना ऱख देना हम चाहे दूर या पास रहे मैय्या तेरे बनके सदा खास रहें..!!! 🙏🌺🙏🌺🙏🌺🙏🌺🙏🌺🙏

संवरण और ताप्ती की कथा - एक सम्राट जिसने एक स्त्री के लिए सब कुछ छोड़ दिया By वनिता कासनियां पंजाब संवरण एक चंद्रवंशी सम्राट थे जो महाराज हस्ती (जिनके नाम पर हस्तिनापुर है) के पड़पोते और महाराज अजमीढ़ के पुत्र थे। अपने पूर्वजों की भांति ही संवरण एक महान राजा साबित हुए जो अपनी प्रजा के सुख के लिए कुछ भी कर सकते थे। उनके राज्य में प्रजा सुखपूर्वक और निर्भय होकर निवास कर रही थी।संवरण भगवान सूर्यनारायण के अनन्य भक्त थे। प्रतिदिन जब तक वे सूर्योपासना नहीं कर लेते थे, अपने कंठ से जल की एक बून्द भी नहीं उतारते थे। एक बार वे अकेले ही आखेट के लिए निकल गए और वन में भटक गए। उसी दौरान उन्होंने सरोवर के पास एक स्त्री को देखा। उस स्त्री का सौंदर्य ऐसा था कि सहस्त्रों अप्सराएं भी उसके समक्ष फीकी लगे।उस अद्भुत सुंदरी को देख कर संवरण उसके पास पहुंचे और उससे कहा कि "हे सुंदरी! तुम कौन हो? मैंने आज तक तुम्हारे जैसी रूपवान स्त्री नहीं देखी। तुम्हे देख कर मैं और कुछ नहीं सोच पा रहा। क्या तुम मुझसे विवाह करोगी? मैं हस्तिनापुर नरेश संवरण हूँ। ये सारा संसार मेरे अधिकार में है और मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि मैं तुम्हे सदा प्रसन्न रखूँगा। अतः मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार करो और इस पृथ्वी की महारानी बन सुख भोगो।"उस स्त्री ने एक क्षण संवरण को देखा और फिर अचानक अदृश्य हो गयी। अब तो संवरण उसकी याद में जल बिन मछली की भांति तड़पने लगे। वे पागलों की तरह वन-वन भटकने लगे और उस स्त्री को पुकारने लगे। उनकी ऐसी दशा देख कर वो स्त्री पुनः उनके पास आयी और कहा - "हे महाराज! मेरा नाम ताप्ती है और मैं सूर्यदेव की कन्या हूँ। आपको देख कर मेरे मन में भी आपको अपने पति के रूप में पाने की इच्छा है किन्तु मैं अपने पिता के अधीन हूँ। अतः यदि आप मुझे प्राप्त करना चाहते हैं तो मुझे मरे पिता से मांगिये।" ये कह कर वो पुनः अदृश्य हो गयी।अब तो संवरण पुनः विक्षिप्त हो यहाँ-वहाँ भटकने लगे। अंत में वे अपनी चेतना खो कर गिर पड़े। बहुत काल के बाद जब वे चेत हुए तो उन्हें पुनः ताप्ती की याद आयी। उन्होंने निश्चय किया कि वे तप कर सूर्यदेव को प्रसन्न करेंगे और ताप्ती को प्राप्त करेंगे। सूर्यभक्त तो वे थे ही, उन्होंने भगवान सूर्यनारायण की घोर तपस्या की। उनका तप इतना भीषण था कि उसका ताप स्वयं सूर्यदेव तक पहुँच गया।संवरण की परीक्षा लेने के लिए सूर्यदेव ने उसकी तपस्या को तोड़ने के लिए उसके कान में कहा - "हे प्रतापी राजा, तुम यहाँ तप कर रहे हो और वहां तुम्हारी प्रजा धीरे-धीरे काल के गाल में समा रही है।" ये सुनने के बाद भी संवरण का तप जब नहीं टूटा तो उन्होंने फिर कहा "तुम्हारा परिवार और बन्धु-बांधव भी काल कलवित हो रहे हैं।" फिर भी संवरण तप में लीन रहे तो सूर्यदेव ने अंतिम बार कहा - "तुम्हारे राज्य में अकाल पड़ा है और मनुष्य क्या, पशु, पक्षी और वृक्ष भी सूख गए हैं।" इतना सुनने के बाद भी संवरण तप में लीन रहे।उसका ऐसा हठ देख कर सूर्यदेव प्रसन्न हुए और उसे अपने दर्शन दिए। उन्होंने संवरण से पूछा कि उसे क्या चाहिए। तब संवरण ने कहा - "हे भगवन! मुझे केवल आपकी पुत्री ताप्ती अपनी पत्नी के रूप में चाहिए।" ये सुनकर सूर्यदेव ने कहा कि "हे राजन! यदि तुम ताप्ती को पत्नी के रूप में प्राप्त कर लोगे तो वो सभी बातें सत्य हो जाएंगी जो मैंने तुमसे तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए कहा था। अब बताओ क्या तुम अब भी ताप्ती को पाना चाहते हो?"संवरण ने कहा - "हे प्रभु! मुझे आपकी पुत्री ताप्ती के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहिए।" ये सुनकर सूर्यदेव ने ताप्ती का विवाह संवरण से कर दिया और दोनों सब कुछ भूल कर उसी वन में सुखपूर्वक रहने लगे। उधर सूर्यदेव के कथनानुसार संवरण के राज्य में भीषण अकाल पड़ा। प्रजा त्राहि-त्राहि कर उठी। संवरण के वृद्ध मंत्री ये जानते थे कि राज्य के राजा का इतने दिनों तक अनुपस्थित रहना ही इस अकाल का कारण है, इसीलिए वे उन्हें खोजने को निकल पड़े।कुछ समय बाद अंततः उन्हें राजा संवरण के दर्शन हुए। उन्होंने संवरण को बहुत बार समझाया कि उनके राज्य की स्थिति अत्यंत विकट है उन्हें तत्काल वापस चलना चाहिए, किन्तु ताप्ती के प्रेम में अंधे बने संवरण किसी भी स्थिति में वापस नहीं लौटना चाहते थे। उनके मंत्री समझ गए कि वे एक स्त्री के मोहजाल में फंसे हुए हैं इसीलिए उन्होंने एक चित्रकार से बहुत सारे चित्र बनवाये और उसे एक पुस्तक का रूप देकर संवरण की भेंट किया।जब संवरण ने उस पुस्तक को खोला तो उन चित्रों को देख कर दहल गए। किसी चित्र में मनुष्यों को मरते हुए दिखाया गया था, किसी में पशु एक दूसरे को नोच रहे थे। एक चित्र में माता अपने पुत्र को स्वयं कुएं में फेंक रही थी ताकि वो भूख से तड़प-तड़प कर मरने के बजाय सरलता से मृत्यु को प्राप्त हो। संवरण ने उन वीभत्स दृश्यों को देख कर भय से अपने नेत्र बंद कर लिए।उन्होंने अपने मंत्री से पूछा - "ये किस राज्य का दृश्य है? उसका राजा कौन है? धिक्कार है ऐसे राजा पर जो अपनी प्रजा को इस हाल में छोड़ गया है।" तब उनके मंत्री ने कहा - "हे महाराज! इस राज्य का नाम हस्तिनापुर है और उसके सम्राट का नाम संवरण है।" जब संवरण ने ये सुना तो अवाक् रह गया।वो बार बार स्वयं को धिक्कारने लगे कि उनके कारण प्रजा की ये दशा हो गयी है। वे तत्काल ताप्ती को लेकर हस्तिनापुर पहुंचे। जब देवराज इंद्र ने देखा कि वे पुनः हस्तिनापुर लौट आये हैं तो उन्होंने तत्काल वहां वर्षा की जिससे दुर्भिक्ष समाप्त हो गया और प्रजा पुनः वैभवशाली हो गयी। उसके बाद संवरण और ताप्ती ने बहुत काल तक हस्तिनापुर पर शासन किया।बाद में जब महर्षि वशिष्ठ और महर्षि विश्वामित्र की प्रतिद्वंदिता के कारण प्रसिद्ध "दशराज युद्ध" हुआ तो दशराज की सेना महाराज संवरण के नेतृत्व में ही महाराज सुदास से लड़ी। किन्तु अंततः दशराज के युद्ध में सुदास विजित हुए और संवरण और अन्य नौ राजाओं की पराजय हुई। हस्तिनापुर साम्राज्य बिखर गया।उसे पुनः प्राप्त करने के लिए देवताओं के आशीर्वाद से संवरण और ताप्ती के पुत्र के रूप में कुरु का जन्म हुआ। वे आगे चलकर हस्तिनापुर के सम्राट बने और उन्होंने अपने प्रताप से सभी राजाओं को परास्त कर अपना राज्य पुनः प्राप्त किया। कुरु ने अपने राज्य की सीमा अनंत तक बढ़ाई और उनके प्रताप के कारण ही उनका कुल कुरुकुल कहलाया। उन्ही के नाम पर सम्यक पंचक नाम का स्थान कुरुक्षेत्र कहलाया जहाँ महाभारत का युद्ध हुआ।Story of Samvaran and Tapti - an emperor who gave up everything for a woman By Vnita Kasnia Punjab Samvaran was a Chandravanshi emperor who was the great-grandson of Maharaj Hasti (whose name is Hastinapur) and Maharaja Ajam.

संवरण और ताप्ती की कथा - एक सम्राट जिसने एक स्त्री के लिए सब कुछ छोड़ दिया By वनिता कासनियां पंजाब  , संवरण एक चंद्रवंशी सम्राट थे जो महाराज हस्ती (जिनके नाम पर हस्तिनापुर है) के पड़पोते और महाराज  अजमीढ़  के पुत्र थे। अपने पूर्वजों की भांति ही संवरण एक महान राजा साबित हुए जो अपनी प्रजा के सुख के लिए कुछ भी कर सकते थे। उनके राज्य में प्रजा सुखपूर्वक और निर्भय होकर निवास कर रही थी। संवरण भगवान सूर्यनारायण के अनन्य भक्त थे। प्रतिदिन जब तक वे सूर्योपासना नहीं कर लेते थे, अपने कंठ से जल की एक बून्द भी नहीं उतारते थे। एक बार वे अकेले ही आखेट के लिए निकल गए और वन में भटक गए। उसी दौरान उन्होंने सरोवर के पास एक स्त्री को देखा। उस स्त्री का सौंदर्य ऐसा था कि सहस्त्रों अप्सराएं भी उसके समक्ष फीकी लगे। उस अद्भुत सुंदरी को देख कर संवरण उसके पास पहुंचे और उससे कहा कि "हे सुंदरी! तुम कौन हो? मैंने आज तक तुम्हारे जैसी रूपवान स्त्री नहीं देखी। तुम्हे देख कर मैं और कुछ नहीं सोच पा रहा। क्या तुम मुझसे विवाह करोगी? मैं हस्तिनापुर नरेश संवरण हूँ। ये सारा संसार मेरे अधिकार में है और मैं तुम...

भारत में अप्सराओं का इतिहास क्या है? By वनिता कासनियां पंजाब हिन्दू धर्म में अप्सराएँ बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अप्सराओं से अधिक सुन्दर रचना और किसी की भी नहीं मानी जाती। पृथ्वी पर जो कोई भी स्त्री अत्यंत सुन्दर होती है उसे भी अप्सरा कह कर उनके सौंदर्य को सम्मान दिया जाता है। कहा जाता है कि देवराज इंद्र ने अप्सराओं का निर्माण किया था। कई अप्सराओं की उत्पत्ति परमपिता ब्रह्मा ने भी की थी जिनमे से तिलोत्तमा प्रमुख है। इसके अतिरिक्त कई अप्सराएं महान ऋषिओं की पुत्रियां भी थी। भागवत पुराण के अनुसार अप्सराओं का जन्म महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री मुनि से हुआ था। कामदेव और रति से भी कई अप्सराओं की उत्पत्ति बताई जाती है।अप्सराओं का मुख्य कार्य इंद्र एवं अन्य देवताओं को प्रसन्न रखना था। विशेषकर गंधर्वों और अप्सराओं का सहचर्य बहुत घनिष्ठ माना गया है। गंधर्वों का संगीत और अप्सराओं का नृत्य स्वर्ग की शान मानी जाती है। अप्सराएँ पवित्र और अत्यंत सम्माननीय मानी जाती है। अप्सराओं को देवराज इंद्र यदा-कदा महान तपस्वियों की तपस्या भंग करने को भेजते रहते थे। पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं जब किसी तपस्वी की तपस्या से घबराकर, कि कहीं वो त्रिदेवों से स्वर्गलोक ही ना मांग लें, देवराज इंद्र ने कई अप्सराओं को पृथ्वी पर उनकी तपस्या भंग करने को भेजा।अप्सराओं का सौंदर्य ऐसा था कि वे सामान्य तपस्वियों की तपस्या को तो खेल-खेल में भंग कर देती थी। हालाँकि ऐसे भी महान ऋषि हुए हैं जिनकी तपस्या को अप्सरा भंग ना कर पायी और उन्हें उनके श्राप का भाजन करना पड़ा। महान ऋषियों में से एक महर्षि विश्वामित्र की तपस्या को रम्भा भंग ना कर पायी और उसे महर्षि के श्राप को झेलना पड़ा किन्तु बाद में वही विश्वामित्र मेनका के सौंदर्य के आगे हार गए। उर्वशी ने भी कई महान ऋषियों की तपस्या भंग की किन्तु मार्कण्डेय ऋषि के समक्ष पराजित हुई।अप्सराओं को उपदेवियों की श्रेणी का माना जाता है। वे मनचाहा रूप बदल सकती हैं और वरदान एवं श्राप देने में भी सक्षम मानी जाती है। कई अप्सराओं ने अनेक असुरों और दैत्यों के नाश में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। इसमें से तिलोत्तमा का नाम उल्लेखनीय है जो सुन्द-उपसुन्द की मृत्यु का कारण बनी। रम्भा को कुबेर के पुत्र नलकुबेर के पास जाने से जब रावण रोकता है और उसके साथ दुर्व्यहवार करता है तब वो रावण को श्राप देती है कि यदि वो किसी स्त्री को उसकी इच्छा के बिना स्पर्श करेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। उसी श्राप के कारण रावण देवी सीता को उनकी इच्छा के विरुद्ध स्पर्श ना कर सका। उर्वशी ने अर्जुन को 1 वर्ष तक नपुंसक रहने का श्राप दिया था।पुराणों में कुल 1008 अप्सराओं का वर्णन है जिनमे से 108 प्रमुख अप्सराओं की उत्पत्ति देवराज इंद्र ने की थी। उन 108 अप्सराओं में भी 11 अप्सराओं को प्रमुख माना जाता है। उन 11 अप्सराओं में भी 4 अप्सराओं का सौंदर्य अद्वितीय माना गया है। ये हैं - रम्भा, उर्वशी, मेनका और तिलोत्तमा। रम्भा सभी अप्सराओं की प्रधान और रानी है। कई अप्सराएं ऐसी भी हैं जिन्हे पृथ्वीलोक पर रहने का श्राप मिला था जैसे बालि की पत्नी तारा, दैत्यराज शम्बर की पत्नी माया और हनुमान की माता अंजना।अप्सराएँ दो प्रकार की मानी गयी हैं:दैविक: ऐसी अप्सराएँ जो स्वर्ग में निवास करती हैं। रम्भा सहित मुख्य ११ अप्सराओं को दैविक अप्सरा कहा जाता है।लौकिक: ऐसी अप्सराएँ जो पृथ्वी पर निवास करती हैं। जैसे तारा, माया, अंजना इत्यादि। इनकी कुल संख्या ३४ बताई गयी है।मान्यता हैं अप्सराओं का कौमार्य कभी भंग नहीं होता और वो सदैव कुमारी ही बनी रहती है। समागम के बाद अप्सराओं को उनका कौमार्य वापस प्राप्त हो जाता है। उनका सौंदर्य कभी क्षीण नहीं होता और ना ही वे कभी बूढी होती हैं। उनकी आयु भी बहुत अधिक होती है। मार्कण्डेय ऋषि के साथ वार्तालाप करते हुए उर्वशी कहती है - हे महर्षि! मेरे सामने कितने इंद्र आये और कितने इंद्र गए किन्तु मैं वही की वही हूँ। जब तक 14 इंद्र मेरे समक्ष इन्द्रपद को नहीं भोग लेते मेरी मृत्यु नहीं होगी।ये भी जानने योग्य है कि भारतवर्ष का सर्वाधिक प्रतापी पुरुवंश स्वयं अप्सरा उर्वशी की देन है। उनके पूर्वज पुरुरवा ने उर्वशी से विवाह किया जिससे आगे पुरुवंश चला जिसमे ययाति, पुरु, यदु, दुष्यंत, भरत, कुरु, हस्ती, शांतनु, भीष्म और श्रीकृष्ण पांडव जैसे महान राजाओं और योद्धाओं ने जन्म लिया। अन्य संस्कृतियों में जैसे ग्रीक धर्म में भी अप्सराओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त कई देशों जिनमे से इंडोनेशिया, कम्बोडिया, चीन और जावा में अप्सराओं का बहुत प्रभाव है।आइये मुख्य अप्सराओं के विषय में जानते हैं:प्रधान अप्सरा - रम्भा3 सर्वोत्तम अप्सराएँ: उर्वशी, मेनका, तिलोत्तमा7 प्रमुख अप्सराएँ: कृतस्थली, पुंजिकस्थला, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, पूर्वचित्तिअन्य प्रमुख अप्सराएँ: अम्बिका, अलम्वुषा, अनावद्या, अनुचना, अरुणा, असिता, बुदबुदा, चन्द्रज्योत्सना, देवी, गुनमुख्या, गुनुवरा, हर्षा, इन्द्रलक्ष्मी, काम्या, कांचन माला, कर्णिका, केशिनी, कुंडला हारिणी, क्षेमा, लता, लक्ष्मना, मनोरमा, मारिची, मिश्रास्थला, मृगाक्षी, नाभिदर्शना, पूर्वचिट्टी, पुष्पदेहा, भूषिणी, रक्षित, रत्नमाला, ऋतुशला, साहजन्या, समीची, सौरभेदी, शारद्वती, शुचिका, सोमी, सुवाहु, सुगंधा, सुप्रिया, सुरजा, सुरसा, सुराता, शशि इत्यादि। , ,चित्र स्रोत: गूगल

भारत में अप्सराओं का इतिहास क्या है? By वनिता कासनियां पंजाब हिन्दू धर्म में अप्सराएँ बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अप्सराओं से अधिक सुन्दर रचना और किसी की भी नहीं मानी जाती। पृथ्वी पर जो कोई भी स्त्री अत्यंत सुन्दर होती है उसे भी अप्सरा कह कर उनके सौंदर्य को सम्मान दिया जाता है। कहा जाता है कि देवराज इंद्र ने अप्सराओं का निर्माण किया था। कई अप्सराओं की उत्पत्ति परमपिता ब्रह्मा ने भी की थी जिनमे से  तिलोत्तमा  प्रमुख है। इसके अतिरिक्त कई अप्सराएं महान ऋषिओं की पुत्रियां भी थी। भागवत पुराण के अनुसार अप्सराओं का जन्म महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री मुनि से हुआ था। कामदेव और रति से भी कई अप्सराओं की उत्पत्ति बताई जाती है। अप्सराओं का मुख्य कार्य इंद्र एवं अन्य देवताओं को प्रसन्न रखना था। विशेषकर गंधर्वों और अप्सराओं का सहचर्य बहुत घनिष्ठ माना गया है। गंधर्वों का संगीत और अप्सराओं का नृत्य स्वर्ग की शान मानी जाती है। अप्सराएँ पवित्र और अत्यंत सम्माननीय मानी जाती है। अप्सराओं को देवराज इंद्र यदा-कदा महान तपस्वियों की तपस्या भंग करने को भेजते रहते थे। पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं जब किस...