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माता दुर्गा का जन्म कैसे हुआ था? बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब वैसे तो शक्ति माता भी अजंमी हैं, लेकिन उन्होंने दो बार जन्म लिया है। एक बार प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में और दूसरी बार महाराज हिमावत की पुत्री के रूप में, पर्वत का राजा कि पुत्री होने के कारण दुर्गा जी को शैलपुत्री कहा जाता है। माता रानी का सबसे प्रमुख नाम 'पार्वती' है। पार्वती जी अपना दुर्गा रूप धारण करके असुरों का विनाश करती हैं। महाराज हिमावत और रानी मैनावती दुर्गा जी के पिता और माता हैं।हर हर महादेव 🙏 जय माँ दुर्गा भवानी 🙏

माता दुर्गा का जन्म कैसे हुआ था? बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब वैसे तो शक्ति माता भी अजंमी हैं, लेकिन उन्होंने दो बार जन्म लिया है। एक बार प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में और दूसरी बार महाराज हिमावत की पुत्री के रूप में, पर्वत का राजा कि पुत्री होने के कारण दुर्गा जी को शैलपुत्री कहा जाता है। माता रानी का सबसे प्रमुख नाम 'पार्वती' है। पार्वती जी अपना दुर्गा रूप धारण करके असुरों का विनाश करती हैं। महाराज हिमावत और रानी मैनावती दुर्गा जी के पिता और माता हैं। हर हर महादेव 🙏 जय माँ दुर्गा भवानी 🙏

#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम #संगरिया #हनुमानगढ़ #राजस्थान में आज #नवरात्रि के पवित्र पावन अवसर पर हम आपको शक्तिसरूपा माता सीता के दस रहस्य,बतायेगें सभी को जानना आवश्यक है!!!!!!!!बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती वनिता #कासनियां #पंजाब 🙏🙏❤️*जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥भावार्थ:-राजा जनक की पुत्री, जगत की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से निर्मल बुद्धि पाऊँ॥पौराणिक काल में ऐसी कई देवियां हुई हैं जिन्हें हम आदर्श और उत्तम चरित्र की देवियां मानते हैं। लेकिन उनमें से सर्वोत्तम हैं माता सीता। जैसे श्रीराम को पुरुषों में उत्तम पुरुषोत्तम कहा गया है, उसी तरह माता सीता भी देवियों में सबसे उत्तम हैं। इसके कई कारण हैं। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने माता सीता वंदना करते हुऐ लिखा है,,,,,,*उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌।सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्‌॥भावार्थ:-उत्पत्ति, स्थिति (पालन) और संहार करने वाली, क्लेशों को हरने वाली तथा सम्पूर्ण कल्याणों को करने वाली श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री सीताजी को मैं नमस्कार करता हूँ॥आओ जानते हैं सीता माता के बारे में दस रहस्य। धर्मशास्त्रों में ऐसी ही अनेक गृहस्थ और पतिव्रता स्त्रियों के बारे में लिखा गया है, जो आज भी हर नारी के लिए आदर्श और प्रेरणा हैं। अनेक लोग माता सीता के जीवन को संघर्ष से भरा भी मानते हैं, लेकिन असल में उनके ऐसे ही जीवन में हर कामकाजी या गृहस्थ स्त्री के लिए बेहतर और संतुलित जीवन के अनमोल सूत्र छुपे हैं। 1.कौन हैं सीता के माता-पिता?देवी सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थीं इसलिए उन्हें 'जानकी' भी कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार मिथिला में पड़े भयंकर सूखे से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे, तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया। उस ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती जोतने लगे। तभी उन्हें धरती में से #सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई एक सुंदर कन्या मिली। उस कन्या को हाथों में लेकर राजा जनक ने उसे 'सीता' नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया। यह रहस्य आज भी बरकरार है कि सीता के माता-पिता कौन हैं? अब आप देखिए कि ऐसी महिला जिसे अपने माता-पिता के बारे में कुछ भी नहीं पता है, वह राजमहल में पली-बढ़ी। इस देश में ऐसी कई बालिकाएं हैं जिन्हें उनके माता-पिता मंदिर की देहली, अस्पताल के बाहर या कचरे के ढेर पर छोड़कर चले गए हैं। ऐसी बालिकाओं को अनाथ आश्रम में जगह मिलती है या भाग्यवश वे किसी अच्छे घर की बेटी बन जाती है। लेकिन सैकड़ों ऐसी भी हैं, जो कि सड़क पर अकेली ही भटक रही हैं। उन सभी महिलाओं को माता सीता की ओर देखना चाहिए और हौसला रखना चाहिए। 2.राम-सीता का विवाह- यदि मन में श्रेष्ठ के चयन की दृढ़ इच्‍छा है तो निश्‍चित ही ऐसा ही होगा। सीता स्वयंवर तो सिर्फ एक नाटक था। असल में सीता ने राम और राम ने सीता को पहले ही चुन लिया था। मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्रीराम तथा जनकपुत्री जानकी (सीता) का विवाह हुआ था, तभी से इस पंचमी को 'विवाह पंचमी पर्व' के रूप में मनाया जाता है। निश्‍चित ही आज के दौर में किसी पुरुष में राम ढूंढना मुश्‍किल है लेकिन इतना भी मुश्किल नहीं। एक प‍त्नीव्रत धर्म का जो पालन करे और 7 वचनों को जो गंभीरता से ले, उसी से विवाह करना चाहिए। महिलाओं को विवाह तो ऐसे ही व्यक्ति से करना चाहिए, जो कि थोड़े-बहुत संस्कारों का पालन करता हो और निर्व्यसनी हो। यदि महिला आदर्श पुरुष की बजाए मॉडर्न पुरुष का चयन कर रही है तो यह रिस्क तो है ही, साथ ही वह समाज में नए प्रचलन को जन्म दे देगी। हो सकता है कि तब जिंदगी एक समझौता बन जाए। 3.असाधारण पतिव्रता- यह बहुत ही आश्चर्य है कि वनवास श्रीराम को मिला लेकिन माता सीता भी उनके साथ महलों के सारे सुख, धन और वैभव को छोड़कर चल दीं। सिर्फ इसलिए कि उन्हें अपने पतिव्रत धर्म को निभाना था। इसलिए भी कि उन्होंने 7 वचन साथ में पढ़े थे। उस काल में वन बहुत ही भयानक हुआ करता था। वहां रहना भी बहुत कठिन था लेकिन माता सीता ने राम के साथ ही रहना स्वीकार किया। निश्‍चित ही पति को अपनी प‍त्नी के हर कदम पर साथ देना जरूरी है, उसी तरह पत्नी का भी उसके पति के हर सुख और दुख में साथ देना जरूरी है। कोई महिला यदि अपने पति के दुख में दुखी और सुखी में सुखी नहीं होती है, तो उसे सोचना चाहिए कि वह क्या है। आदर्श और उत्तम दांपत्य जीवन शिव-पार्वती और राम-सीता की तरह ही हो सकता है। 4.सिर्फ गृहिणी नहीं कामकाजी भी- माता सीता सिर्फ गृहिणी ही नहीं थीं अर्थात घर में रहकर रोटी बनाना या घर के ही कामकाज देखना। वे प्रभु श्रीराम के हर कार्य में हाथ बंटाती थीं। इस तरह वे एक कामकाजी महिला भी थीं। श्रीराम जहां रुकते थे, वहां वे 3 लोगों के रहने के लिए एक कुटिया बनाते, खुद के कपड़े बनाते, जलाने की लकड़ियां इकट्ठी करते और खाने के लिए कंद-मूल तोड़ते थे। उक्त सभी कार्यों में लक्ष्मण सहित माता सीता उनका साथ देती थीं। 5.सीता का साहस- माता सीता का जब रावण ने अपहरण कर लिया और उन्हें अशोक वाटिका में रखा तब इस कठिन परिस्थिति में उन्होंने शील, सहनशीलता, साहस और धर्म का पालन किया। इस दौरान रावण ने उन्हें साम, दाम, दंड और भेद तरह की नीति से अपनी ओर झुकाने का प्रयास किया लेकिन माता सीता नहीं झुकीं, क्योंकि उनको रावण की ताकत और वैभव के आगे अपने पति श्रीराम और उनकी शक्ति के प्रति पूरा विश्वास था।लंकाधिपति रावण ने अपहरण करके 2 वर्ष तक माता सीता को अपनी कैद में रखा था। इस कैद में माता सीता एक वाटिका की गुफा में राक्षसनियों के पहरे में रहती थीं। 6.सीता का विश्वास- हनुमान जब लंका में अशोक वाटिका पहुंचे तो वे भगवान श्रीराम की जो अंगूठी लाए थे, वह सीता को दी। सीता माता बहुत खुश हुईं। उन्होंने अपने कष्ट को व्यक्त किया और आशंका और निराशा भी जताई कि इतना विलंब कैसे हो गया राम को आने में? नाथ कहीं भूल तो नहीं गए मुझे? सीता के मन की ऐसी स्थिति जानकर हनुमान ने कहा कि राम को आने में थोड़ा विलंब हो रहा है माता, यदि आपको लग रहा है कि वे समुद्र पार कर पाएंगे या नहीं तो मैं आज ही आपको लेकर रामजी के पास चलता हूं। हनुमानजी ने उन्हें अपनी शक्ति का भरोसा और परिचय दिया। सीता हनुमानजी की शक्ति को देखकर आश्‍वस्त हो गईं और समझ गईं कि यह वानर तत्क्षण ही मुझे राम के पास ले जा सकता है। इसके बाद भी सीताजी ने कहा कि 'राम के प्रति मेरा जो समर्पण है, जो संपूर्ण त्याग है, मेरा पतिव्रता का धर्म है, उसको ध्यान में रखकर मैं राम के अतिरिक्त किसी अन्य का स्पर्श नहीं कर सकती। अब राम यहां आएं, रावण का वध करें। जो उसके लोग हैं, उनको मारें और हमें लेकर जाएं। रामजी ही मुझे मान-मर्यादा के साथ लेकर जाएं, यही उचित होगा।' 7.मायावी सीता- माना जाता है कि रणक्षेत्र में वानर सेना तथा राम-लक्ष्मण में भय और निराशा फैलाने के लिए रावण के पुत्र मेघनाद ने अपनी शक्ति से एक मायावी सीता की रचना की, जो सीता की भांति ही नजर आ रही थीं। मेघनाद ने उस मायावी सीता को अपने रथ के सामने बैठाकर रणक्षेत्र में घुमाना प्रारंभ किया। वानरों ने उसे सीता समझकर प्रहार नहीं किया। बाद में मेघनाद ने मायावी सीता के बालों को पकड़कर खींचा तथा सभी के सामने उसने उसके दो टुकड़े कर दिए। यह दृश्य देखकर वानर सेना में निराशा फैल गई। सभी सोचने लगे कि जिस सीता के लिए युद्ध कर रहे हैं, वे तो मारी गई हैं। अब युद्ध करने का क्या फायदा? राम ने सीता की मृत्यु का समाचार सुना तो वे भी अचेत हो गए। चारों ओर फैला खून देखकर सब लोग शोकाकुल हो उठे। यह देखकर मेघनाद निकुंभिला देवी के स्थान पर जाकर हवन करने लगा। जब राम की चेतना लौटी तो लक्ष्मण और हनुमान ने उन्हें अनेक प्रकार से समझाया तथा विभीषण ने कहा कि 'रावण कभी भी सीता को मारने की आज्ञा नहीं दे सकता, अत: यह निश्चय ही मेघनाद की माया का प्रदर्शन है। आप निश्चिंत रहिए।' बाद में कुछ दिन युद्ध और चला और अंतत: रावण मारा गया। 8.सीता की अग्निपरीक्षा- सीता ने अग्निपरीक्षा दी थी या नहीं दी थी? यह सवाल अभी भी बना हुआ है। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने अग्निपरीक्षा दी थी लेकिन राम ने सीता का त्याग नहीं किया था। जिस सीता के बिना राम एक पल भी रह नहीं सकते और जिसके लिए उन्होंने सबसे बड़ा युद्ध लड़ा उसे वे किसी व्यक्ति और समाज के कहने पर क्या छोड़ सकते हैं? राम जब सीता को रावण के पास से छुड़वाकर अयोध्या ले आए तो उनके राज्याभिषेक के कुछ समय बाद मंत्रियों और दुर्मुख नामक एक गुप्तचर के मुंह से राम ने जाना कि प्रजाजन सीता की पवित्रता के विषय में संदिग्ध है अत: सीता और राम को लेकर अनेक मनमानी बातें बनाई जा रही हैं। उस वक्त सीता गर्भवती थीं। राम और अन्य से सीता से कहा कि समाज में बातें बनाई जा रही हैं। सभी कहते हैं कि अग्निपरीक्षा देगा पड़ेगी। माना जाता है कि राम और समाज द्वारा संदेह किए जाने के कारण सीता ने ग्लानि, अपमान और दु:ख से विचलित होकर चिता तैयार करने की आज्ञा दी। सीता ने यह कहा- 'यद्यपि मन, वचन और कर्म से मैंने सदैव राम को ही स्मरण किया है तथा रावण जिस शरीर को उठाकर ले गया था, वह अवश था, तब अग्निदेव मेरी रक्षा करें।' और फिर सीता माता ने जलती हुई चिता में प्रवेश किया। अग्निदेव ने प्रत्यक्ष रूप धारण करके सीता को गोद में उठाकर राम के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए कहा कि वे हर प्रकार से पवित्र हैं। इस अग्निपरीक्षा के बाद भी जनसमुदाय में तरह-तरह की बातें बनाई जाने लगीं, तब राम के समक्ष फिर से धर्मसंकट उत्पन्न हो गया। 9.वाल्मीकि आश्रम में सीता- सीता जब गर्भवती थीं तब उन्होंने एक दिन राम से एक बार तपोवन घूमने की इच्‍छा व्यक्त की। किंतु राम ने वंश को कलंक से बचाने के लिए लक्ष्मण से कहा कि वे सीता को तपोवन में छोड़ आएं। हालांकि कुछ जगह उल्लेख है कि श्रीराम का सम्मान उनकी प्रजा के बीच बना रहे इसके लिए उन्होंने अयोध्या का महल छोड़ दिया और वन में जाकर वे वाल्मीकि आश्रम में रहने लगीं। वे गर्भवती थीं और इसी अवस्था में उन्होंने अपना घर छोड़ा था। वाल्मीकि आश्रम से सीता ने लव और कुश नामक 2 जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। 10.सीता की मृत्यु- माता सीता अपने पुत्रों के साथ वाल्मीकि आश्रम में ही रहती थीं। एक बार की बात है कि भगवान श्रीराम ने अश्‍वमेध यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में वाल्मीकिजी ने लव और कुश को रामायण सुनाने के लिए भेजा। राम ने दोनों कुमारों से यह चरित्र सुना। कहते हैं कि प्रतिदिन वे दोनों बीस सर्ग सुनाते थे। उत्तरकांड तक पहुंचने पर राम ने जाना कि वे दोनों राम के ही बालक हैं। तब राम ने सीता को कहलाया कि यदि वे निष्पाप हैं तो यहां सभा में आकर अपनी पवित्रता प्रकट करें। वाल्मीकि सीता को लेकर सभा में गए। वहां सभा में वशिष्ठ ऋषि भी थे। वशिष्ठजी ने कहा- 'हे राम, मैं वरुण का 10वां पुत्र हूं। जीवन में मैंने कभी झूठ नहीं बोला। ये दोनों तुम्हारे पुत्र हैं। यदि मैंने झूठ बोला हो तो मेरी तपस्या का फल मुझे न मिले। मैंने दिव्य-दृष्टि से उसकी पवित्रता देख ली है।' सीता हाथ जोड़कर नीचे मुख करके बोलीं- 'हे धरती मां, यदि मैं पवित्र हूं तो धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं।' जब सीता ने यह कहा तब नागों पर रखा एक सिंहासन पृथ्वी फाड़कर बाहर निकला। सिंहासन पर पृथ्वी देवी बैठी थीं। उन्होंने सीता को गोद में बैठा लिया। सीता के बैठते ही वह सिंहासन धरती में धंसने लगा और सीता माता धरती में समा गईं। हालांकि पद्मपुराण में इसका वर्णन अलग मिलता है। पद्मपुराण की कथा में सीता धरती में नहीं समाई थीं बल्कि उन्होंने श्रीराम के साथ रहकर सिंहासन का सुख भोगा था और उन्होंने भी राम के साथ में जल समाधि ले ली थी। इन बातों का निचोड़ यही है कि आज की स्त्री भी सीता के पावन चरित्र की तरह ही सेवा, संयम, त्याग, शालीनता, अच्छे व्यवहार, हिम्मत, शांति, निर्भयता, क्षमा और शांति को जीवन में स्थान देकर कामकाजी और दांपत्य जीवन के बीच संतुलन के साथ सफलता और सम्मान भी पा सकती है।

#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम #संगरिया #हनुमानगढ़ #राजस्थान में  आज #नवरात्रि के पवित्र पावन अवसर पर हम आपको शक्तिसरूपा माता सीता के दस रहस्य,बतायेगें सभी को जानना आवश्यक है!!!!!!!! बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती वनिता #कासनियां #पंजाब 🙏🙏❤️ *जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥ ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥ भावार्थ:-राजा जनक की पुत्री, जगत की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से निर्मल बुद्धि पाऊँ॥ पौराणिक काल में ऐसी कई देवियां हुई हैं जिन्हें हम आदर्श और उत्तम चरित्र की देवियां मानते हैं। लेकिन उनमें से सर्वोत्तम हैं माता सीता। जैसे श्रीराम को पुरुषों में उत्तम पुरुषोत्तम कहा गया है, उसी तरह माता सीता भी देवियों में सबसे उत्तम हैं। इसके कई कारण हैं। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने माता सीता वंदना करते हुऐ लिखा है,,,,,, *उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌। सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्‌॥ भावार्थ:-उत्पत्ति, स्थिति (पालन) और स...

#माँ दुर्गा को #दुर्गा क्यो कहते हैं?????#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थानहमारे सनातन #धर्म में प्रत्येक देवी-देवता से जुड़े तथ्य हमेशा से ही रोचकता पैदा करते रहे हैं, फिर वह चाहे अपने भक्तों को वरदान देने के संदर्भ में हो या फिर किसी दुष्ट प्राणी को दंड देने की बात हो, शास्त्रों की पौराणिक कथायें हमें पल-पल अचंभित करती हैं, कथाओं के साथ ही विभिन्न देवी-देवताओं के प्राकट्य, तथा उनके नाम से जुड़ी कथायें भी बहुत #रोचक हैं।माँ दुर्गा के नाम से जुड़ी एक कथा काफी प्रचलित है, माना जाता है कि मां दुर्गा जिन्हें मां काली के नाम से भी जाना जाता है, उनका नाम एक बड़ी घटना के बाद ही दुर्गा पड़ा था, श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित एक कथा के अनुसार एक दुष्ट प्राणी पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् ही देवी को दुर्गा नाम से बुलाया गया।यह तब की बात है जब प्रह्लाद के वंश में दुर्गम नाम का एक अति भयानक, क्रूर और पराक्रमी दैत्य पैदा हुआ, इस दैत्य के जीवन का एक ही मकसद था- सभी देवी-देवताओं को पराजित कर समस्त सृष्टि पर राज करना, लेकिन जब तक महान देवता इस दुनिया में मौजूद थे, तब तक दुर्गम के लिए यह करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी था।अपनी सूझ-बोझ से दुर्गम ने यह पता लगा लिया था, कि जब तक देवताओं के पास महान वेदों का बल है, तब तक वह उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकेगा, इसलिये उसने उन देवों को हड़पने की योजना बनायीं, उसका मानना था कि यदि यह वेद देवताओं से दूर हो जायेंगे तो वे शक्तिहीन होकर पराजित हो जायेंगे।दुर्गम ने हिमालय #पर्वत जा कर तपस्या करने का फैसला किया, वहां जाकर उसने सृष्टि के रचियता ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या आरम्भ कर दी, यदि उसकी #तपस्या से ब्रह्माजी खुश हो गये तो वे वरदान में उनसे जो चाहे वो मांग सकता था।दुर्गम ने तपस्या शुरू की, सैकड़ों साल बीत गये लेकिन दुर्गम तपस्या में लीन रहा, उसकी कठोर तपस्या के तेज से सभी देवता अचंभित और भयभीत हो गयें, वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिरकार ऐसा कौन है? जो इतने ध्यान से तप में लीन बैठा है, तीनों लोकों में हाहाकार मच गया।जहां एक तरफ सभी देवता दुर्गम के तप से हैरान-परेशान हो रहे थे, वहीं दूसरी ओर ब्रह्माजी ने उसे अपना दर्शन देने का निर्णय किया, ब्रह्माजी दुर्गम के सामने प्रकट हुये उस समय भी वह अपनी तपस्या में ध्यान लगाये बैठा था, उसे यह आभास भी नहीं हुआ कि ब्रह्माजी उसके निकट खड़े हैं।उसे समाधि में लीन देखकर ब्रह्माजी बोले- वत्स! अपने नेत्र खोलो, मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूंँ और तुम्हें मुंहमांगा वरदान देने आया हूंँ, मांगो तुम्हें क्या चाहियें, भगवान् ब्रह्माजी के वचन सुन दुर्गम ने अपने नेत्र खोले, ब्रह्माजी को अपने सामने देख उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा, उसे लगा कि अब उसकी सभी मनोकामनायें अवश्य पूर्ण होगी।वह बोला- हे पितामह! यदि आप मेरे इस कठोर तप से प्रसन्न हैं तो मुझे सभी वेद देने की कृपा कीजिये, सब वेद मेरे अधिकार में हो जायें, वेदों के साथ ही मुझे ऐसा अतुल्य बल प्रदान किजिये जिससे कि देवता, मनुष्य, गंधर्व, यक्ष, नाग कोई भी मुझे पराजित न कर सके, दुर्गम की प्रार्थना सुनते ही ब्रह्माजी ने तथास्तु कहा और वहां से ब्रह्मलोक लौट गये।#ब्रह्माजी द्वारा दुर्गम को वरदान देते ही देवी-देवता, ऋषि-मुनि सारे वेदों को भूल गये, इतना ही नहीं, सभी स्नान, संध्या, हवन, श्राद्ध, यज्ञ एवं जप आदि वैदिक क्रियाएं नष्ट हो गयीं, सारे भूमण्डल पर भीषण हाहाकार मच गया, वातावरण ने भी अपना प्रकोप दिखाना आरंभ कर दिया, वर्षा बंद हो गई और पृथ्वी पर चारों ओर अकाल पड़ गया।यह देख सभी देवता बहुत दुखी हुयें, केवल यही उनकी चिंता का कारण नहीं था, बल्कि शक्तिहीन हो जाने की वजह से वह दैत्यों से भी पराजित हो गये, अब हर जगह दैत्यों का राज था और देवता परेशान थे, अपनी परेशानी का हल उन्हें मिल नहीं रहा था, सभी देवताओं ने देवी भगवती से इस कठिनाई का समाधान मांगा, हिमालय पर उन्हें माँ भगवती के साक्षात दर्शन हुये। अपने हालात से परेशान देवताओं ने माता भगवती से मदद मांगी, तब देवी ने उन्हें यह भरोसा दिया कि वे किसी भी प्रकार से सभी वेदों को दुर्गम से वापस लाएंगी और देवताओं को सौंपेगी, जिसके फलस्वरूप उन्हें उनकी शक्तियां वापस मिलेंगी, यह कहकर देवी दुर्गम को पराजित करने के लिए हिमालय से निकल पड़ीं। दुर्गम को पहले ही देवी के आने की खबर मिल गई थी, जिसके बाद उसने दैत्यों की एक विशाल सेना खड़ी कर ली, देवी के साथ देवताओं की सेना भी थी, लेकिन फिर भी दैत्यों की सेना को नष्ट करना कठिन था, वहां पहुंचकर देवताओं और दैत्यों में भयंकर युद्ध आरम्भ हो गया, दोनों ओर से भीषण शक्तियों का प्रयोग होने लगा। लेकिन देवों के ऊपर दैत्यों की सेना भारी पड़ रही थी जिसका कारण था दुर्गम को ब्रह्माजी द्वारा मिला हुआ वरदान, इस वरदान के अनुसार देवता उसे किसी भी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे, इसलिये उस पर हो रहे वार का कोई असर ही नहीं हो रहा था, तब माँ भगवती ने अपने अंश से आठ देवियों का निर्माण किया। यह आठ देवियां थी- कालिका, तारिणी, बगला, मातंगी, छिन्नमस्ता, तुलजा, कामाक्षी, और भैरवी, इन देवियों में माता भगवती की तरह ही अपार शक्तियां थीं, जिनसे वह दैत्यों से युद्ध करने की क्षमता रखती थीं, इन सभी देवियों को आज भी कलयुग में माना जाता है, लोग इनकी पूजा करते हैं तथा इन्हें प्रसन्न करने के लिये व्रत-उपवास भी रखते हैं।इसके बाद माता भगवती के साथ देवियों और दैत्यों के बीच भीषण युद्ध हुआ, धीरे-धीरे सभी दैत्य पराजित होने लगे, माता भगवती द्वारा प्रकट की गयीं देवियों के सामने दैत्यों की शक्तियां बेअसर होने लगीं, अंत में #माता जगदम्बा के वार से दुर्गम का वध हो गया, इस तरह दुष्ट एवं पापी #दैत्य दुर्गम के प्राण हर लिये गये। दुर्गम को पराजित करने की #खुशी में सभी देवतायें आकाश से माता पर #फूलों की वर्षा करने लगे, माता भगवती द्वारा दुर्गम को मार कर #देवताओं को वेद दिए गये, जिसके बाद उनकी सभी शक्तियां लौट आयीं, इस घटना के बाद ही दुर्गम का वध करने के कारण भगवती का नाम दुर्गा पड़ गया।जय हो माँ #भगवती!

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