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लग्न में बैठा राहु किन स्थितियों में अच्छा प्रभाव देता है?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबश्रीमान जीयदि लग्न भाव मे राहु विद्यमान है तो निम्नवत परिस्थितियो मे अच्छा प्रभाव या फल प्रदान करेगे -● राहु अपनी उच्च राशि वृषभ मे या मूल त्रिकोण राशि मिथुन मे विराजमान होने पर उत्तम फलदायक रहेगे ।● लग्न भाव मे राहु स्वराशि ग्रह के साथ युति मे होने पर लग्नेश के बल मे वृद्धि करेगे उत्तम फलदायी रहेगे ।● जब राहु लग्न भाव मे विद्यमान होकर कुंडली के केन्द्रश से सम्बंध मे हो उत्तम फल प्रदान करते है ।● राहु लग्न मे विराजमान हो और कुंडली के त्रिकोणेश से सम्बंध बनाए तो श्रेष्ठ फल प्रदायक होते है ।● राहु लग्न भाव मे विद्यमान होकर केन्द्रश एवं त्रिकोणेश दोनो से सम्बंध बनाए तो राजयोग का फल प्रदान करते है ।● राहु लग्न भाव मे उच्च राशिगत ग्रह से युत होने पर उत्तम फलदायक रहते है ।● राहु छाया ग्रह है जिस भाव मे जिस राशि मे विद्यमान होते हैं के कारकतत्व ग्रहण कर लेते है यदि राहु लग्न भाव मे विद्यमान हो लग्नेश शुभ प्रभाव युक्त हो एवं बली अवस्था मे कुंडली मे स्थित हो तो राहु उत्तम फल प्रदान करेगे ।आशा है आप सभी बाते स्पष्ट रूप से समझ गये होगे ज्योतिषीय जिज्ञासा का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न करने के लिए आपका ह्दय से आभार आपका उत्साह वर्धन नवीन प्रेरणा प्रदायक रहेगा जी ।मूल स्रोत- श्री गुरु कृपाइमेज स्रोत गूगल

लग्न में बैठा राहु किन स्थितियों में अच्छा प्रभाव देता है? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्रीमान जी यदि लग्न भाव मे राहु विद्यमान है तो निम्नवत परिस्थितियो मे अच्छा प्रभाव या फल प्रदान करेगे - ● राहु अपनी उच्च राशि वृषभ मे या मूल त्रिकोण राशि मिथुन मे विराजमान होने पर उत्तम फलदायक रहेगे । ● लग्न भाव मे राहु स्वराशि ग्रह के साथ युति मे होने पर लग्नेश के बल मे वृद्धि करेगे उत्तम फलदायी रहेगे । ● जब राहु लग्न भाव मे विद्यमान होकर कुंडली के केन्द्रश से सम्बंध मे हो उत्तम फल प्रदान करते है । ● राहु लग्न मे विराजमान हो और कुंडली के त्रिकोणेश से सम्बंध बनाए तो श्रेष्ठ फल प्रदायक होते है । ● राहु लग्न भाव मे विद्यमान होकर केन्द्रश एवं त्रिकोणेश दोनो से सम्बंध बनाए तो राजयोग का फल प्रदान करते है । ● राहु लग्न भाव मे उच्च राशिगत ग्रह से युत होने पर उत्तम फलदायक रहते है । ● राहु छाया ग्रह है जिस भाव मे जिस राशि मे विद्यमान होते हैं के कारकतत्व ग्रहण कर लेते है यदि राहु लग्न भाव मे विद्यमान हो लग्नेश शुभ प्रभाव युक्त हो एवं बली अवस्था मे कुंडली मे स्थित हो तो राहु उत्तम फल प्रदान करेगे । आशा है...

हिन्दू धर्म बाल वनिता महिला आश्रमके तीन प्रमुख सम्प्रदायों में से एक है। आदि शक्ति अर्थात देवी की उपासना करने वाला सम्प्रदाय शाक्त सम्प्रदाय कहलाता है।By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबमहिषासुरमर्दिनी देवी दुर्गाइस सम्प्रदाय में सर्वशक्तिमान को देवी (पुरुष नहीं, स्त्री) माना जाता है। कई देवियों की मान्यता है जो सभी एक ही देवी के विभिन्न रूप हैं। शाक्त मत के अन्तर्गत भी कई परम्पराएँ मिलतीं हैं जिसमें लक्ष्मी से लेकर भयावह काली तक हैं। देवी को दक्षिण मे काली चंडी,उत्तर में शाकुम्भरी देवी,पश्चिम मे अंबाजी,पूर्व मे काली रूप मे पूजा जाता हैकुछ शाक्त सम्प्रदाय अपनी देवी का सम्बन्ध शिव या विष्णु से बताते हैं।हिन्दुओं के श्रुति तथा स्मृति ग्रन्थ, शाक्त परम्परा का प्रधान ऐतिहासिक आधार बनाते हुए दिखते हैं। इसके अलावा शाक्त लोग देवीमाहात्म्य, देवीभागवत पुराण तथा शाक्त उपनिषदों (जैसे, देवी उपनिषद) पर आस्था रखते हैं।शाक्त अर्थात 'भगवती शक्ति की उपासना'। शाक्त धर्म शक्ति की साधना का विज्ञान है। इसके मतावलंबी शाक्त धर्म को भी प्राचीन वैदिक धर्म के बराबर ही पुराना मानते हैं। यह बात उल्लेखनीय है कि इस धर्म का विकास वैदिक धर्म के साथ ही साथ या सनातन धर्म में इसे समावेशित करने की ज़रूरत के साथ ही हुआ। यह हिन्दू धर्म में पूजा का एक प्रमुख स्वरूप है, जिसे अब 'हिन्दू धर्म' कहा जाता है, उसे तीन अंतःप्रवाहित, परस्परव्यापी धाराओं में विभाजित किया जा सकता है। वैष्णववाद, भगवान विष्णु की उपासना; शैववाद, भगवान शिव की पूजा; तथा शाक्तवाद, देवी के शक्ति रूप की उपासना। इस प्रकार शाक्तवाद दक्षिण एशिया में विभिन्न देवी परम्पराओं को नामित करने वाला आम शब्द है, जिसका सामान्य केन्द्र बिन्दु देवियों की पूजा है।[1]'शक्ति की पूजा' शक्ति के अनुयायियों को अक्सर 'शाक्त' कहा जाता है। शाक्त न केवल शक्ति की पूजा करते हैं, बल्कि उसके शक्ति–आविर्भाव को मानव शरीर एवं जीवित ब्रह्माण्ड की शक्ति या ऊर्जा में संवर्धित, नियंत्रित एवं रूपान्तरित करने का प्रयास भी करते हैं। विशेष रूप से माना जाता है कि शक्ति, कुंडलिनी के रूप में मानव शरीर के गुदा आधार तक स्थित होती है। जटिल ध्यान एवं यौन–यौगिक अनुष्ठानों के ज़रिये यह कुंडलिनी शक्ति जागृत की जा सकती है। इस अवस्था में यह सूक्ष्म शरीर की सुषुम्ना से ऊपर की ओर उठती है। मार्ग में कई चक्रों को भेदती हुई, जब तक सिर के शीर्ष में अन्तिम चक्र में प्रवेश नहीं करती और वहाँ पर अपने पति-प्रियतम शिव के साथ हर्षोन्मादित होकर नहीं मिलती। भगवती एवं भगवान के पौराणिक संयोजन का अनुभव हर्षोन्मादी–रहस्यात्मक समाधि के रूप में मनों–दैहिक रूप से किया जाता है, जिसका विस्फोटी परमानंद कहा जाता है कि कपाल क्षेत्र से उमड़कर हर्षोन्माद एवं गहनानंद की बाढ़ के रूप में नीचे की ओर पूरे शरीर में बहता है।[1]'मान्यता'[1]हिन्दुओं के शाक्त सम्प्रदाय में भगवती काली और ललिता को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है यह पुराण वस्तुत: 'दुर्गा चरित्र' एवं 'दुर्गा सप्तशती' के वर्णन के लिए प्रसिद्ध है। इसीलिए इसे शाक्त सम्प्रदाय का पुराण भी कहा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है- 'मातर: सर्वभूतानां गाव:' यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। हिन्दू धर्म के अनेक सम्प्रदायों में विभिन्न प्रकार के तिलक, चन्दन, हल्दी और केसर युक्त सुगन्धित पदार्थों का प्रयोग करके बनाया जाता है। वैष्णव गोलाकार बिन्दी, शाक्त तिलक और शैव त्रिपुण्ड्र से अपना मस्तक सुशोभित करते हैं।'धर्म ग्रंथ' शाक्त सम्प्रदाय में देवी दुर्गा के संबंध में 'श्रीदुर्गा भागवत पुराण' एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें १०८ देवी पीठों का वर्णन किया गया है। उनमें से भी ५१-५२ शक्ति पीठों का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसी में दुर्गा सप्तशति भी है। इसके अलावा कालिका पुराण, शाक्त महाभागवत और ६५ तंत्र प्रमुख हैं।'दर्शन' शाक्तों का यह मानना है कि दुनिया की सर्वोच्च शक्ति स्त्रेण है। इसीलिए वे देवी को ही ईश्वर रूप में पूजते हैं। दुनिया के सभी धर्मों में ईश्वर की जो कल्पना की गई है, वह पुरुष के समान की गई है। अर्थात ईश्वर पुरुष जैसा हो सकता है, किंतु शाक्त धर्म दुनिया का एकमात्र ऐसा धर्म है, जो सृष्टि रचनाकार को जननी या स्त्रेण मानता है। सही मायने में यही एकमात्र धर्म स्त्रियों का धर्म है। शिव तो शव है, शक्ति परम प्रकाश है। हालाँकि शाक्त दर्शन की सांख्य समान ही है।'प्राचीनता' सिंधु घाटी सभ्यता में भी मातृदेवी की पूजा के प्रमाण मिलते हैं। शाक्त सम्प्रदाय प्राचीन सम्प्रदाय है। गुप्त काल में यह उत्तर-पूर्वी भारत, कम्बोडिया, जावा, बोर्निया और मलाया प्राय:द्वीपों के देशों में लोकप्रिय था। बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद इसका प्रभाव कम हुआ।हिन्दू आस्था का प्रतिबिम्ब'सैद्धांतिक या लोकप्रिय धार्मिक प्रवर्ग के रूप में शाक्तवाद इस हिन्दू आस्था का प्रतिबिम्ब है कि ग्रामीण एवं संस्कृत की किंवदन्तियों की असंख्य देवियाँ एक महादेवी की अभिव्यक्तियाँ हैं। आमतौर पर माना जाता है कि महादेवी की अवधारणा प्राचीन है। लेकिन ऐतिहासिक रूप से शायद इसका कालांकन मध्य काल का है। जब अत्यधिक विषम स्थानीय एवं अखिल भारतीय परम्पराओं का एकीकरण सैद्धांतिक रूप से एकीकृत धर्मशास्त्र में किया जाता था। धर्मशास्त्र प्रवर्ग के ऐतिहासिक और सैद्धांतिक रूप से भिन्न परम्पराओं में प्रयुक्त किया जा सकता है। मध्यकालीन पुराणों की विभिन्न देवियों की पौराणिक कथाओं से लेकर दो प्रमुख देवी शाखाओं या शाक्त तंत्रवाद कुलों[4] से पूर्ववर्ती एवं वर्तमान, वस्तुतः असंख्य स्थानीय ग्रामीण देवियों तक है।[1]'लोकप्रियता'ऐतिहासिक रूप से शाक्तवाद दक्षिण एशिया के बाहरी इलाक़े में लोकप्रिय रहा है। विशेष रूप से कश्मीर, दक्षिण भारत, असम और बंगाल में, हालाँकि इसके तांत्रिक प्रतीक और अनुष्ठान कम से कम छठी शताब्दी से हिन्दू परम्पराओं में सर्वव्यापी रहे हैं। हाल में परम्परागत प्रवासी भारतीय जनसंख्या के साथ, कुछ भारत विद्या शैक्षिक समुदाय में और विभिन्न नवयुग एवं नारीवादोन्मुखी परम्पराओं के साथ, सामान्यतः पश्चिम में ज़्यादा लोकप्रिय शीर्षक तंत्रवाद या तंत्र के अंतर्गत परम्परागत, दार्शनिक एवं लोकप्रिय शाक्तवाद के विविध स्वरूपों ने प्रवेश किया है।[1]शाक्त संस्कृति’ कृष्ण काल में ब्रज में शाक्त संस्कृति का प्रभाव बहुत बढ़ा। ब्रज में महामाया, महाविद्या, करोली, सांचोली आदि विख्यात शक्तिपीठ हैं। मथुरा के राजा कंस ने वासुदेव द्वारा यशोदा से उत्पन्न जिस कन्या का वध किया था, उसे भगवान श्रीकृष्ण की प्राणरक्षिका देवी के रूप में पूजा जाता है। देवी शक्ति की यह मान्यता ब्रज से सौराष्ट्र तक फैली है। द्वारका में भगवान द्वारकानाथ के शिखर पर चर्चित सिंदूरी आकर्षक देवी प्रतिमा को कृष्ण की भगिनी बतलाया गया है, जो शिखर पर विराजमान होकर सदा इनकी रक्षा करती हैं। ब्रज तो तांत्रिकों का आज से १०० वर्ष पूर्व तक प्रमुख गढ़ था। यहाँ के तांत्रिक भारत भर में प्रसिद्ध रहे हैं। कामवन भी राजा कामसेन के समय तंत्र विद्या का मुख्य केंद्र था, उसके दरबार में अनेक तांत्रिक रहते थे।[1]'उद्देश्य'सभी सम्प्रदायों के समान ही शाक्त सम्प्रदाय का उद्देश्य भी मोक्ष है। फिर भी शक्ति का संचय करो, शक्ति की उपासना करो, शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही सत्य है, शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति की सभी को आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो। इसीलिए नाथ और शाक्त सम्प्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह-तरह के योग और साधना करते रहते हैं। सिद्धियाँ प्राप्त करते रहते हैं। शक्ति से ही मोक्ष पाया जा सकता है। शक्ति नहीं है तो सिद्ध, बुद्धि और समृद्धि का कोई मतलब नहीं है।[1]

  हिन्दू धर्म   बाल वनिता महिला आश्रम के तीन प्रमुख सम्प्रदायों में से एक है। आदि शक्ति अर्थात देवी की उपासना करने वाला सम्प्रदाय शाक्त सम्प्रदाय कहलाता है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब महिषासुरमर्दिनी देवी  दुर्गा इस सम्प्रदाय में सर्वशक्तिमान को  देवी  (पुरुष नहीं, स्त्री) माना जाता है। कई देवियों की मान्यता है जो सभी एक ही देवी के विभिन्न रूप हैं। शाक्त मत के अन्तर्गत भी कई परम्पराएँ मिलतीं हैं जिसमें  लक्ष्मी  से लेकर भयावह  काली  तक हैं। देवी को दक्षिण मे काली चंडी,उत्तर में शाकुम्भरी देवी,पश्चिम मे अंबाजी,पूर्व मे काली रूप मे पूजा जाता हैकुछ शाक्त सम्प्रदाय अपनी देवी का सम्बन्ध  शिव  या  विष्णु  से बताते हैं। हिन्दुओं के  श्रुति  तथा  स्मृति  ग्रन्थ, शाक्त परम्परा का प्रधान ऐतिहासिक आधार बनाते हुए दिखते हैं। इसके अलावा शाक्त लोग  देवीमाहात्म्य ,  देवीभागवत पुराण  तथा शाक्त उपनिषदों (जैसे,  देवी उपनिषद ) पर आस्था रखते हैं। शाक्त अर्थात 'भगवती शक्ति की उपासना'। शाक्त धर्म शक्...

दुर्गा असल में शिव की पत्नी आदिशक्ति का एक रूप हैं, शिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है। एकांकी (केंद्रित) होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवश अनेक हो जाती है।By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबदुर्गा मां शक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी हैं जिन्हें और देवी ,शक्ति जग्दम्बा और आदि नामों से भी जाना जाता हैं । शाक्त की वह मुख्य देवी हैं जिनकी तुलना परम ब्रह्म से की जाती है। दुर्गा को आदि शक्ति, प्रधान प्रकृति, गुणवती योगमाया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित बताया गया है। वह अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली तथा कल्याणकारी हैं। उनके बारे में मान्यता है कि वे शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का विनाश करतीं हैं।देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं (सावित्री, लक्ष्मी एव पार्वती से अलग)। मुख्य रूप उनका "गौरी" है, अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप। उनका सबसे भयानक रूप "काली" है, अर्थात काला रूप। विभिन्न रूपों में दुर्गा भारत और नेपाल के कई मन्दिरों और तीर्थस्थानों में पूजी जाती हैं।भगवती दुर्गा की सवारी शेर है।मार्कण्डेय पुराण में ब्रहदेव ने मनुष्‍य जाति की रक्षा के लिए एक परम गुप्‍त, परम उपयोगी और मनुष्‍य का कल्‍याणकारी देवी कवच एवं व देवी सुक्‍त बताया है और कहा है कि जो मनुष्‍य इन उपायों को करेगा, वह इस संसार में सुख भोग कर अन्‍त समय में बैकुण्‍ठ को जाएगा। ब्रहदेव ने कहा कि जो मनुष्‍य दुर्गा सप्तशती का पाठ करेगा उसे सुख मिलेगा। भगवत पुराण के अनुसार माँ जगदम्‍बा का अवतरण श्रेष्‍ठ पुरूषो की रक्षा के लिए हुआ है। जबकि श्रीं मद देवीभागवत के अनुसार वेदों और पुराणों कि रक्षा के और दुष्‍टों के दलन के लिए माँ जगदंबा का अवतरण हुआ है। इसी तरह से ऋगवेद के अनुसार माँ दुर्गा ही आदि-शक्ति है, उन्‍ही से सारे विश्‍व का संचालन होता है और उनके अलावा और कोई अविनाशी नही है।इसीलिए नवरात्रि के दौरान नव दुर्गा के नौ रूपों का ध्‍यान, उपासना व आराधना की जाती है तथा नवरात्रि के प्रत्‍येक दिन मां दुर्गा के एक-एक शक्ति रूप का पूजन किया जाता है।

दुर्गा  असल में शिव की पत्नी आदिशक्ति का एक रूप हैं, शिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है। एकांकी (केंद्रित) होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवश अनेक हो जाती है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब दुर्गा  मां शक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी हैं जिन्हें और  देवी  , शक्ति  जग्दम्बा और आदि नामों से भी जाना जाता हैं ।  शाक्त  की वह मुख्य देवी हैं जिनकी तुलना परम  ब्रह्म  से की जाती है। दुर्गा को आदि शक्ति, प्रधान प्रकृति, गुणवती योगमाया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित बताया गया है। वह अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली तथा कल्याणकारी हैं। उनके बारे में मान्यता है कि वे शान्ति, समृद्धि तथा  धर्म  पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का विनाश करतीं हैं। देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं (सावित्री, लक्ष्मी एव पार्वती से अलग)। मुख्य रूप उनका " गौरी " है, अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप। उनका सबसे भयानक रूप " काली " है, अर्थात काला रूप। विभिन्न रूपों में दुर्गा  भारत...

**ओम सूर्यदेवाय नमः****जय श्री राधे कृष्णा जी****शुभ रविवार ,सुप्रभातम**By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब. *आज का विचार **हम जहां प्रार्थना करते है, केवल वहीं ईश्वर नही होता। ईश्वर वहां भी होता है जहां हम गुनाह करते है।।**मंदिर में ईश्वर के सामने जाते है। तो अपने आपको साफ सुथरा बना कर जाते है।।**क्योंकि हम ये सोचते है कि ईश्वर सिर्फ यहीं है।**जब हम किसी के साथ दुर्व्यवहार करते है।। अपशब्द बोलते है तब ये भूल जाते है। कि ईश्वर यहां भी है।।**मतलब हम सिर्फ अपनी सुविधा के तरीके से ये मानते है। कि यहां ईश्वर है,औऱ यहां नही है, असल में तो ईश्वर ना यहां है , ना वहां है**ईश्वर आपके ह्रदय में है। आपकी वाणी में है**ईश्वर कहा तक जा सकता है।। कहा हो सकता है।**जहां तक आपके विचार जाते है।। वहां तक ईश्वर है।**आज से जब भी आप के मन मे कोई दुर्भावना, क्रोध उत्पन्न हो तो ये जरूर याद कर लेना की ईश्वर यहां भी है।।*. *निर्णय आपका**स्वयं विचार करे*: *यात्रा बहुत छोटी है*एक बुजुर्ग महिला बस में यात्रा कर रही थी। अगले पड़ाव पर, एक मजबूत, क्रोधी युवती चढ़ गई और बूढ़ी औरत के बगल में बैठ गई। उस क्रोधी युवती ने अपने बैग से कई बार चोट पहुंचाई।जब उसने देखा कि बुजुर्ग महिला चुप है, तो आखिरकार युवती ने उससे पूछा कि जब उसने उसे अपने बैग से मारा तो उसने शिकायत क्यों नहीं की?बुज़ुर्ग महिला ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया: "इतनी तुच्छ बात पर चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आपके बगल में मेरी यात्रा बहुत छोटी है, मैं अगले पड़ाव पर उतरने जा रही हूं।"यह उत्तर सोने के अक्षरों में लिखे जाने के योग्य है: "इतनी तुच्छ बात पर चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारी यात्रा एक-साथ बहुत छोटी है।"*हम में से प्रत्येक को यह समझना चाहिए कि इस दुनिया में हमारा समय इतना कम है कि इसे बेकार तर्कों, ईर्ष्या, दूसरों को क्षमा न करना, असंतोष रखना और बुरा व्यवहार दर्शाना आदि में खर्च करना, ऊर्जा की हास्यास्पद बर्बादी है।**क्या किसी ने आपका दिल तोड़ा?*शांत रहें।**यात्रा बहुत छोटी है।**क्या किसी ने आपको धोखा दिया,धमकाया, धोखा दिया या अपमानित किया? आराम करें - तनावग्रस्त न हों**यात्रा बहुत छोटी है।*क्या किसी ने बिना वजह आपका अपमान किया? शांत रहें। इसे नजरअंदाज करो।यात्रा बहुत छोटी है।क्या किसी पड़ोसी ने ऐसी टिप्पणी की जो आपको पसंद नहीं आई? शांत रहें। उसकी ओर ध्यान मत दो। उसे माफ कर दो।यात्रा बहुत छोटी है।किसी ने हमें जो भी समस्या दी है, याद रखें कि हमारी यात्रा उसके साथ बहुत छोटी है।हमारी यात्रा की लंबाई कोई नहीं जानता। कोई नहीं जानता कि वह अपने पड़ाव पर कब पहुंचेगा।हमारी एक-साथ यात्रा बहुत छोटी है।*आइए हम दोस्तों और परिवार की सराहना करें।**आइए हम आदरणीय, दयालु और क्षमाशील बनें।**क्योंकि आखिरकार हम कृतज्ञता और आनंद से भर जाएंगे after all**हमारी एक-साथ यात्रा बहुत छोटी है।**अपनी मुस्कान सबके साथ बाँटिये ना....**हमारी यात्रा बहुत छोटी है!*बाल वनिता महिला आश्रम*जिन्दगी दो पल की*❣*"खुश रहिये मुस्कुराते रहिये...✍️*

***ओम सूर्यदेवाय नमः** **जय श्री राधे कृष्णा जी** **शुभ रविवार ,सुप्रभातम** By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब . *आज का विचार * *हम जहां प्रार्थना करते है, केवल वहीं ईश्वर नही होता। ईश्वर वहां भी होता है जहां हम गुनाह करते है।।* *मंदिर में ईश्वर के सामने जाते है। तो अपने आपको साफ सुथरा बना कर जाते है।।* *क्योंकि हम ये सोचते है कि ईश्वर सिर्फ यहीं है।* *जब हम किसी के साथ दुर्व्यवहार करते है।। अपशब्द बोलते है तब ये भूल जाते है। कि ईश्वर यहां भी है।।* *मतलब हम सिर्फ अपनी सुविधा के तरीके से ये मानते है। कि यहां ईश्वर है,औऱ यहां नही है, असल में तो ईश्वर ना यहां है , ना वहां है* *ईश्वर आपके ह्रदय में है। आपकी वाणी में है* *ईश्वर कहा तक जा सकता है।। कहा हो सकता है।* *जहां तक आपके विचार जाते है।। वहां तक ईश्वर है।* *आज से जब भी आप के मन मे कोई दुर्भावना, क्रोध उत्पन्न हो तो ये जरूर याद कर लेना की ईश्वर यहां भी है।।* . *निर्णय आपका* *स्वयं विचार करे* : *यात्रा बहुत छोटी है* एक बुजुर्ग महिला बस में यात्रा कर रही थी। अगले पड़ाव पर, एक मजबूत, क्रोधी युवती चढ़ गई और बूढ़ी औरत के बगल में बैठ गई। उस क्...

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि शुरू होती है.By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब इस बार आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि 11 जुलाई 2021 दिन रविवार से शुरू होकर 18 जुलाई 2021 दिन रविवार को समाप्त होगी.बाल वनिता महिला आश्रम

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि शुरू होती है. By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब  इस बार आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि 11 जुलाई 2021 दिन रविवार से शुरू होकर 18 जुलाई 2021 दिन रविवार को समाप्त होगी. बाल वनिता महिला आश्रम